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गोवर्धन पर्वत को श्रीकृष्ण का प्रत्यक्ष स्वरूप माना जाता है।
यह वही पर्वत है जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर सात दिन तक उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी।
इंद्रदेव के गर्व को तोड़ने और ब्रजवासियों को वर्षा से बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने इस चमत्कार को किया था।
तभी से हर वर्ष गोवर्धन पूजा के दिन इस पर्वत की पूजा की जाती है।
गोवर्धन परिक्रमा तीर्थयात्रा का सबसे पवित्र हिस्सा मानी जाती है।
यह लगभग 21 किलोमीटर लंबी परिक्रमा है जिसे भक्त नंगे पाँव अथवा दंडवत प्रणाम करते हुए पूरी करते हैं।
परिक्रमा मार्ग पर अनेक पवित्र स्थान आते हैं:
दनघाटी
पुंचरी का लोटा
जतिपुरा
मुखारविंद मंदिर
👉 विशेष रूप से पूर्णिमा और अमावस्या पर लाखों भक्त यहाँ परिक्रमा करने आते हैं।
यह वह स्थान है जहाँ गोवर्धन पर्वत के मुख का दर्शन होता है।
यहाँ श्रद्धालु दूध, जल और पुष्प अर्पण करते हैं।
यह स्थल अत्यंत शक्तिशाली और चमत्कारी माना जाता है।
दानघाटी मंदिर गोवर्धन क्षेत्र का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है।
यहाँ पर श्रीकृष्ण की मूर्ति को दान स्वरूप पूजा जाता है, जहाँ वे ब्रजवासियों से अन्न और दान लेते हैं।
इस मंदिर का वातावरण अत्यंत भक्तिमय होता है।
गोवर्धन पूजा के दिन यहाँ विशाल मेला लगता है।
हज़ारों लोग पर्वत की गोबर से बनी आकृति को अन्नकूट से सजाकर पूजा करते हैं।
यह उत्सव दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है।
गोवर्धन पर्वत भले ही ऊँचाई में अब ज्यादा न दिखे, लेकिन उसकी आध्यात्मिक ऊर्जा आज भी जीवित है।
यहाँ की चट्टानें, वृक्ष, और मिट्टी भी भक्तों के लिए पूजनीय हैं।
परिक्रमा करते समय आपको कई साधु-संत, भजन-कीर्तन, और गोसेवा के दृश्य मिलेंगे।
मथुरा से दूरी: लगभग 22 किमी
बस, टैक्सी और ऑटो आसानी से उपलब्ध हैं।
नज़दीकी रेलवे स्टेशन: मथुरा जंक्शन
निकटतम एयरपोर्ट: आगरा और दिल्ली
गोवर्धन में अनेक धर्मशालाएँ, होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं।
यदि आप परिक्रमा कर रहे हैं, तो कई जगह भंडारा (निःशुल्क भोजन) की सुविधा भी होती है।
स्थानीय ब्रज भोजन – खिचड़ी, पूड़ी, अचार और दही यहाँ के स्वाद में विशेष हैं।
गोवर्धन यात्रा केवल तीर्थ नहीं, यह एक अंतर्मन की यात्रा है।
यहाँ कदम-कदम पर श्रद्धा, भक्ति और श्रीकृष्ण की लीला का अनुभव होता है।
यदि आप शांति, भक्ति और आत्मिक आनंद चाहते हैं, तो गिरिराज महाराज की परिक्रमा अवश्य करें।